रविवार, अप्रैल 04, 2010

जिन्दगी है सूनी-सूनी , किसी अनजाने की तलाश में|

जिन्दगी है सूनी-सूनी ,
किसी अनजाने की तलाश में|

एक उम्र गुजार दी हमने
कोई तो आएगा हमारी जिन्दगी,
इसी आश में|

कितने मौसम आये और गए,
लग जाती है आग,
सावन की बरसात में|

कोई तो अपना सा हो
तड़फते रहते हैं,
सारी सारी रात में,

जिन्दगी है सूनी-सूनी ,
किसी अनजाने की तलाश में|

3 टिप्‍पणियां:

  1. ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है .

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  2. धन्यवाद भास्कर जी,
    कई बार जब मन में विचारो का उन्माद उमड़ता है तो कविता बन जाती है

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