मंगलवार, जून 25, 2013

गाँव का अपना घर

इस गर्मी के मौसम में...

याद आता है गाँव का अपना घर
और घर पर वो खुली छत
छत पर लगी होती सोने के लिए खाट
ख़त्म ना वो परिवार के  संग बातें

और कभी जब होते थे अकेले
तारों को देखते कट जाती थी रातें

कभी आ जाता था जब कोई मेहमान
बनते थे उनके लिए खूब पकवान
जमती थी महफिल फिर छत पर
अलग सी रौनक रहती थी घर में

याद आती है वो गर्मियों की छुट्टियों
खूब मस्ती करते थे दोस्तों के संग
दिन में खेलते कैरम और लूडो
शाम होते ही उड़ती थी पतंग

बीत गया बचपन बदल गयी दुनिया
एक अनजान मंजिल की तलाश में
निकले घर से जब  कदम
बढ़ता रहा निरन्तर और पीछे छुटा वो गाँव का अपना घर