रविवार, अप्रैल 08, 2007

आई रे आई होली ,मस्ती में घूमें लोगों की टोली।

आई रे आई होली ,
मस्ती
में घूमें लोगों की टोली।

रगों से ये दुनिया रगींन है,
बिन
रगं श्याम और श्वेत क्या ज़िदगीं है।

तो भर लो खुशी और प्यार के रगं।
ऐसे
रगों इन ऱगों दुनिया भी रह जाए दगं।

हर तरफ़ रगों की मची है बहार,

भुला के सब मनमुटाव गले लग जाओ य़ारों।

लग के एकदुजे को रगं जोर से बोलो, बुरा मानना होली है।

कवि- विश्वजीत 'सिहँ'

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