आई रे आई होली ,
मस्ती में घूमें लोगों की टोली।
रगों से ये दुनिया रगींन है,
बिन रगं श्याम और श्वेत क्या ज़िदगीं है।
तो भर लो खुशी और प्यार के रगं।
ऐसे रगों इन ऱगों दुनिया भी रह जाए दगं।
हर तरफ़ रगों की मची है बहार,
भुला के सब मनमुटाव गले लग जाओ य़ारों।
लगा के एकदुजे को रगं जोर से बोलो, बुरा न मानना होली है।
कवि- विश्वजीत 'सिहँ'
bahut hi sundar sabdo me kavi ne Holi ke tyohar ki vyakhya ki hai. varbhav Bhav bhool kar pyar ke rang jivan me bharne ki prerna di hai.
जवाब देंहटाएंKavi ko dero badhiyan....
hi, tum kavi kam se ban gye? anyways poem is very nice.
जवाब देंहटाएंkeep the good work on
जवाब देंहटाएंkavi ji , ab ye kavitaye likhni chhod do, ghar-bar sambhalo. apki saadi ho gayi hai , u know.
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