सोमवार, जुलाई 28, 2014
शनिवार, जुलाई 26, 2014
किसान की दुविधा
टक टकी लगाये ,
देखे किसान भाई आसमान की ओर।
इस गजब ढाया राम जी ने,
दूर दूर तक ना आस दिखे बारिश की,
सामण में ना नाच्या भी मोर।
सूखी फसल ने देख हो गया किसान दुखी,
ना है नहरा में पाणी ।
ना है बिजली टुबवेल के लिए ,
डीज़ल के रेट देख के बोले भाई खेती कुछ ना आणी जाणी।
कदे पड़ा सूखा कदे आ जावे बाढ़,
कदे ओले करदे नास फसल का,
कदे मार जावे पाला।
कब रहवेगी या खेती राम भरोसे ,
इस किसान भाई ने ना कोई संभालण वाला।
फेर भी इसकी हिम्मत देखो,
रूखी सूखी खा के करे है गुजारा।
फिर भी है देश के लिए अन्नदाता,
डूब के कर्ज में अगली फसल के लिए जुए का दाव लगाता।
देखे किसान भाई आसमान की ओर।
इस गजब ढाया राम जी ने,
दूर दूर तक ना आस दिखे बारिश की,
सामण में ना नाच्या भी मोर।
सूखी फसल ने देख हो गया किसान दुखी,
ना है नहरा में पाणी ।
ना है बिजली टुबवेल के लिए ,
डीज़ल के रेट देख के बोले भाई खेती कुछ ना आणी जाणी।
कदे पड़ा सूखा कदे आ जावे बाढ़,
कदे ओले करदे नास फसल का,
कदे मार जावे पाला।
कब रहवेगी या खेती राम भरोसे ,
इस किसान भाई ने ना कोई संभालण वाला।
फेर भी इसकी हिम्मत देखो,
रूखी सूखी खा के करे है गुजारा।
फिर भी है देश के लिए अन्नदाता,
डूब के कर्ज में अगली फसल के लिए जुए का दाव लगाता।
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