सोमवार, दिसंबर 31, 2007

आओ नववर्ष में रखें कदम,

आओ नववर्ष में रखें कदम,
नई आशाओं और ऊमन्गो के संग।
भारतवर्ष को आगे बढाने लिऐ करे हम पर्यत्न,
इसके लिये हम सब लङ जाये हर जंग।

कवि- विश्वजीत 'सिहँ'

रविवार, अप्रैल 08, 2007

चमकेगा हमारा हिन्दुस्तान।


मिटेगा द्वेष, बनेगा भाईचारा,
होगी हमारी अनोखी शान।
लहराएगा तिरंगा ऊंचे गगन में,
चमकेगा हमारा हिन्दुस्तान।

एक दिन मिट जाएगा इस देश से भष्ट्राचार,
नए उल्लास और नई किरण के निकलने का मिलेगा समाचार।
बच्चो बुढों में और जवानो में आयेगी नई जान,
चमकेगा हमारा हिन्दुस्तान।

न होगा कोई गरीब और न होगा अमीर,
ऊँच-नीच के भेदभाव की मिट जाएगी लकीर।
मिलेगा हर हिन्दुस्तानी को रोटी-कपङा और मकान,
चमकेगा हमारा हिन्दुस्तान।

जनसख्या वॄद्धि में अंकुश लगेगा,
नई पीढी के लिए नई आशा का सूर्य चमकेगा।
सोने की चिङया बन जाएगा फिर से भारतवर्ष महान,
चमकेगा हमारा हिन्दुस्तान।

हिन्दु-मुस्लिम-जैन-सिख-ईसाइ-बोद्ध धर्म,
हमने जान लिया इन धर्मो का एक ही मर्म।
मिटेगा साम्प्रदायिकता का अभिशाप,बढेगा हमारा अभिमान,
चमकेगा हमारा हिन्दुस्तान।

समाप्त होगा नक्सलवाद, खत्म होगा आतंकवाद,
आर्यवर्तः झूम उठेगा,होगा फिर आबाद।
नहीं भटकेंगे पथ से नौजवान,
चमकेगा हमारा हिन्दुस्तान।

अंग्रेजी को छोङेंगे पिछे हम,
हिन्दी का करेंगे हम वन्दन।
यही संकल्प हमारा होगा, जिससे बढेगी हिन्दी की शान,
चमकेगा हमारा हिन्दुस्तान।

हर भारतीय एक-दुजे का होगा अपना,
पूरा होगा हमारा सपना।
होगी हमारी अनोखी दास्तान,
चमकेगा हमारा हिन्दुस्तान।
कवि- विश्वजीत 'सिहँ'


आई रे आई होली ,मस्ती में घूमें लोगों की टोली।

आई रे आई होली ,
मस्ती
में घूमें लोगों की टोली।

रगों से ये दुनिया रगींन है,
बिन
रगं श्याम और श्वेत क्या ज़िदगीं है।

तो भर लो खुशी और प्यार के रगं।
ऐसे
रगों इन ऱगों दुनिया भी रह जाए दगं।

हर तरफ़ रगों की मची है बहार,

भुला के सब मनमुटाव गले लग जाओ य़ारों।

लग के एकदुजे को रगं जोर से बोलो, बुरा मानना होली है।

कवि- विश्वजीत 'सिहँ'