बदलते है साल तारीखों में,
पर नहीं बदली दुनिया ।
प्रोयोधिकी निरंतर हो रहा है विकास,
जिससे हुआ ऊँचा हुआ जीवन स्तर।
पर न बदली है हमारी सोच और भी गिरा है चरित्र।
लिख रहा हूँ मुझे समझ ना आये ,
पर सुनता हूँ गीत कवि 'प्रदीप' के
वोह आज भी मैंने सार्थक पाये:
'आज के इस इंसान को ये क्या हो गया,
इसका पुराना प्यार कहाँ पर खो गया। '
देता हूँ मुबारकबाद नए साल की ,
ख़ुश रहो आबाद रहो,
यहाँ रहो या फरीदाबाद रहो।
'नववर्षकि हार्दिक शुभकामनाएं।'
पर नहीं बदली दुनिया ।
प्रोयोधिकी निरंतर हो रहा है विकास,
जिससे हुआ ऊँचा हुआ जीवन स्तर।
पर न बदली है हमारी सोच और भी गिरा है चरित्र।
लिख रहा हूँ मुझे समझ ना आये ,
पर सुनता हूँ गीत कवि 'प्रदीप' के
वोह आज भी मैंने सार्थक पाये:
'आज के इस इंसान को ये क्या हो गया,
इसका पुराना प्यार कहाँ पर खो गया। '
देता हूँ मुबारकबाद नए साल की ,
ख़ुश रहो आबाद रहो,
यहाँ रहो या फरीदाबाद रहो।
'नववर्षकि हार्दिक शुभकामनाएं।'
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