मंगलवार, दिसंबर 31, 2013

नवबर्ष कि हार्दिक शुभकामनाएं

बदलते है साल तारीखों में,
पर नहीं बदली  दुनिया । 

प्रोयोधिकी निरंतर हो रहा है विकास,
जिससे हुआ ऊँचा हुआ जीवन स्तर।
पर न बदली है हमारी सोच और भी गिरा है चरित्र। 

लिख रहा हूँ मुझे समझ ना  आये ,
पर सुनता हूँ गीत कवि 'प्रदीप' के 
वोह आज भी मैंने सार्थक पाये:

'आज  के इस इंसान को ये क्या हो गया,
 इसका पुराना प्यार कहाँ पर खो गया। '

देता हूँ मुबारकबाद नए साल की ,
ख़ुश रहो आबाद रहो,
यहाँ रहो या फरीदाबाद रहो।

'नववर्षकि हार्दिक शुभकामनाएं।'

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